लेखनी प्रतियोगिता -18-Jun-2022... सूनी आंखें
सुखविंदर :-जस्सी जाकर बहु को समझा.... कब तक ऐसे खुद को कमरे में बंद रखेगी...। होनी को कौन टाल सकता हैं..।
जस्सी :- समझा समझा कर थक गई हूँ...। मुझसे अब ओर नहीं होता...।
सुखविंदर :- लेकिन कोई तो हिम्मत देगा ना उसे... ऐसे छोड़ भी तो नहीं सकते हैं..! अमर जा बेटा तू ले आ अपनी भाभी को...।
अमर रोते हुए :- क्या बोलकर बाहर लाऊँ बाऊजी.... बाहर आइये... भाई की लाश आ रहीं हैं...। मैंने आपको पहले ही कहा था बाऊजी.. मत भेजिए इस बार भाई को...।
सुखविंदर गुस्से से :- अमरिंदर... अपनी जबान को काबू में रख...। शहीद हुआ हैं तेरा भाई.... शहीद.... लाश नहीं बुलाते ऐसे वीरों को..।
अमरिंदर रोते रोते :- देश का सोचा भाई ने... भाभी का सोचा... अपने होने वाले बच्चे का सोचा...। जब से खबर आई हैं भाभी की आंख से एक आंसू नहीं टपका हैं... पत्थर बनकर भाई की तस्वीर के सामने बैठीं हुई हैं...। अब क्या होगा उनका... उनके पेट में पल रहे बच्चे का..!
जस्सी ये सुनकर फुट फुट कर रोने लगी...।
सुखविंदर उसे ढांढस बंधाते हुए :- बस कर जस्सी.... तू ऐसे कमजोर पर जाएगी तो बहु को कौन संभालेगा...। शेरों के मां बाप रोया नहीं करते...। जा बहु को ले आ..।
जस्सी रोते हुए :- मुझमें हिम्मत नहीं हैं जी... अब आप ही ले आइये..।
सुखविंदर :- ठीक है... मैं ही जाता हूँ....।
सुखविंदर अपनी बहु आयशा के कमरे के बाहर जाकर आवाज लगाता हैं :- बेटा.. आशु बेटा.. बाहर आ बेटा...। अपने पति को अंतिम विदाई नही देगी..! एक बच्चे को उसके बाप के अंतिम दर्शन नहीं कराएगी बेटा...। बाहर आ बेटा..।
लेकिन भीतर से कोई आवाज़ नहीं आई तो सुखविंदर दरवाजे को खटखटाने लगा...। इस पर भी भीतर से कोई आवाज़ नहीं आई...। कुछ पल रुककर सुखविंदर दरवाजे को धक्का देते हुए भीतर की ओर चला गया..।
भीतर का मंजर देख कर सुखविंदर भी अपने आंसू नहीं रोक पाया..।
आयशा की कलाई से खून टपक रहा था... जो चूड़ी तोड़ने पर हुए घाव की वजह से था..। बाल बिखरे हुए...। परम की तस्वीर को सीने से लगाए हुए... बिल्कुल खामोश.. मुर्दा लाश जैसी... सूनी आंखें..।
हिम्मत करके सुखविंदर उसके पास गया और अपनी जेब से रुमाल निकाल कर उसकी कलाई पर बांधा और सहारा देकर उसे धीरे धीरे बाहर की ओर लेकर आया..।
लेकिन आयशा को जैसे कुछ होश ही नहीं था..। वो बस परम की तस्वीर को साथ लेकर बेजान सी सुखविंदर के साथ बाहर आई..।
परम की खबर अब तक पूरे गाँव में फैल गई थीं..। गाँव के सभी लोगों का जमावड़ा हो गया था..। चारों तरफ़ दिल दहला देने वाला माहौल पसरा हुआ था..।
आयशा बाहर आकर फिर से एक कोने में खामोश आंखों से सभी को निहारती हुई बैठ गई...।
कुछ देर बाद ही भारत माता की जय... भारत माता की जय के नारे गुंजने लगे....। सेना के वाहन से कुछ सैनिकों के साथ परम की लाश पर तिरंगा ओढ़ कर उसके घर के बाहर आए...।
परम की डेथ बाडी को उसके घर के बरामदे में पूरे अदब से रखा गया...।
जस्सी दौड़ती हुई परम के सीने से लग गई और फूट फूट कर रोने लगी..।
अमर और सुखविंदर को संभालना भी अब मुश्किल हो रहा था..।
इतनी चीखों... रोने... गिड़गड़ाने... दिल दहला देने वाले मंजर के बावजूद आयशा पर कोई असर नहीं था..। वो अभी भी दीवार के कोने पर खामोश बैठी थीं..।
किसी में भी इतनी हिम्मत नहीं थीं की आयशा को परम की देह के पास लेकर आए...।
आयशा की सूनी आंखें सब कुछ देखकर... भी अंधी हो चुकी थीं..।
Seema Priyadarshini sahay
22-Jun-2022 12:05 PM
बेहतरीन रचना
Reply
Ajay
19-Jun-2022 11:42 AM
🙏🏻🙏🏻
Reply
Pallavi
19-Jun-2022 09:53 AM
Nice post 😊
Reply